Daadi ki Silaai Mchine - 1 in Hindi Motivational Stories by S Sinha books and stories PDF | दादी की सिलाई मशीन - 1

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दादी की सिलाई मशीन - 1

“ दादी की सिलाई मशीन “ एक उपन्यास है जिसमें पढ़ेंगे - एक विधवा स्त्री ने अकेले सिलाई मशीन के बल पर कैसे अपने परिवार का न सिर्फ पालन पोषण किया बल्कि एक परम्परा शुरू की जिसका पालन आने वाली चार पाँच पीढ़ियों ने किया ….

भाग 1

दादी की सिलाई मशीन

करीब छः दशक पहले की बात है. उस समय गाँवों में न पक्की सड़क थी, न बिजली, न नल का पानी. गाँव में यातायात के साधन बैलगाड़ी या टमटम हुआ करते थे. दीना बाबू का गाँव सोन नदी के किनारे बसा था, उन दिनों सोन नदी में हर साल बाढ़ आती थी. फिर एक दो महीने बाद बाढ़ का पानी तो चला जाता था पर फसल बर्बाद होती ही और साथ में जमीन का विवाद खड़ा हो जाता. खेतों के बीच की मुंडेर टूट कर बह जाती और दूर दूर तक सपाट मैदान की तरह रह जाता था, जिसमें करीब एक दर्जन लोगों की खेत होती. अमीन पुराना सर्वे का नक्शा ले कर आता और फिर से उनके खेतों की नपाई कर नयी मार्किंग लगाता. दीना बाबू सीधे सादे इंसान थे. हर बार बाढ़ के बाद उनकी जमीन कुछ कम ही होती जाती. गाँव के और लोग चालाक थे, अमीन और पटवारी को खिला पिला कर दीना बाबू की कुछ जमीन हड़प लेते थे.

एक बार तो तंग आ कर उन्होंने कचहरी में मुकदमा दायर दिया. मुकदमा तो कर दिया पर कोर्ट कचहरी और वकीलों के दांव पेंच से वे अनभिज्ञ थे. दीना बाबू मुकदमा हार गए. तंग आ कर आखिर में उन्होंने नदी के किनारे वाला खेत बेचने का फैसला किया. उनके बगल वाले खेत का मालिक इसी दिन का इंतजार कर रहा था. उसने दीना बाबू का खेत खरीद लिया हालांकि उन्हें बहुत ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ पर मार्केट रेट से कुछ कम में बेचना पड़ा था. खरीदार चालाक था, उसे पता था कि सोन नदी पर डैम बन रहा है जिसके बाद बाढ़ आनी बंद हो जाएगी. नदी किनारे वाले खेतों की जमीन बालू वाली थी जिस पर तरबूज, खीरा, ककड़ी, परवल आदि मौसमी फल सब्जी भरपूर होते थे. ऐसे फल सब्जी कैश क्रॉप हैं जिन्हें बेचने पर नगद रकम तुरंत मिल जाती है.

दीना बाबू के पास नदी वाली जमीन के अलावा भी गाँव में अन्यत्र और भी पुश्तैनी खेत थे जिससे उनके परिवार का गुजारा बड़े आराम से हो जाता था. वैसे भी परिवार में थे ही कितने लोग - बस मियां बीबी और उनका बेटा कैलाश. बड़ी बेटी का ब्याह उन्होंने बहुत पहले ही कर दिया था. दीना बाबू ने मुकदमा हारने के बाद अपने बेटे को वकील बनाने का फैसला किया.उनका बेटा कैलाश पढ़ लिख कर अब वकील बन गया पर वह भी अपने पिता दीना बाबू की तरह सीधा सादा ईमानदार व्यक्ति था. अपना मुकदमा जीतने के लिए झूठ या छल प्रपंच का सहारा नहीं लेता था. वह बहस के दौरान झूठे गवाहों के छक्के छुड़ा देता और उसके विरोधी मैदान छोड़ कर भाग जाते. जीत कैलाश की होती. गाँव में लोग उसकी बहुत इज्जत करते थे.

दीना बाबू ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे. कहा जाता था कि वे पांचवीं जमात तक ही पढ़ सके थे. बहुत कम उम्र से ही खेती में लग गए और बस यही एक पेशा था उनका. उनके पिताजी ने अपने जीवन में संपत्ति का बंटवारा अपने दोनों बेटों में कर दिया था. दीना बाबू का छोटा भाई गाँव की सम्पत्ति बेच कर शहर में जा बसा. उसका लड़का यानि दीना बाबू का भतीजा सुरेश उम्र में कैलाश से एक डेढ़ साल बड़ा था. दीना बाबू के अनुज तो चल बसे थे. सुरेश और कैलाश दोनों उसी शहर की कचहरी में वकील थे.

दीना बाबू ने अपने बेटे की शादी पटना के एक परिवार से तय किया था. लड़की भी उनके जान पहचान की थी. उसका नाम कमला था, वह उनके दोस्त की भतीजी थी. जब कभी वे पटना आते जाते  दोस्त से मिलने जरूर जाते और वहीँ पर कमला को उन्होंने देखा तो एक नजर में पसंद कर लिया था.  उन्होंने दोस्त से कैलाश और कमला के रिश्ते की बात की. कमला के माता पिता नहीं थे, वह अपने भाई और भाभी के साथ उनके दोस्त के पड़ोस में ही रहती थी और अक्सर चाचा से मिलने आया करती. कमला उस समय आठवीं कक्षा पास कर कुछ दिन पहले नवीं में गयी थी.

रिश्ते की बात पर उनके दोस्त ने कहा “ दीना एक बात मैं पहले ही कह देता हूँ. कमला का भाई दहेज़ में कैश नहीं दे सकता है. मैं भी रूपये पैसे से कोई मदद नहीं कर पाऊँगा. तुम्हारी कोई खास तिलक आदि की मांग हो तो पहले बता देना. पर इतना कोशिश जरूर करूँगा कि तुम पर भी शादी के चलते बोझ न पड़े. कमला के लिए गहने, कपड़े नयी गृहस्थी के जरूरी सामान शादी में उपहार स्वरूप मिल जायेंगे और बारातियों के स्वागत में कोई कमी नहीं होगी. बस अगर तुम्हारे मन में दहेज़ में मोटी रकम कैश में लेने की है तो पहले ही बता दो क्योंकि वह सम्भव नहीं है. मैं रिश्ते की बात आगे नहीं करूंगा. “

“ तुम लोग ख़ुशी ख़ुशी कमला के लिए जितना दे सकते हो बस उतना ही काफी है. मेरी तरफ से कोई खास मांग नहीं है. भगवान् ने इतना तो दे ही रखा है हमारे परिवार में किसी को कैलाश के दहेज़ मिलने का इंतजार नहीं है. लड़की देखने में सुंदर है और उसका व्यवहार भी अभी तक मैंने अच्छा देखा है. मुझे ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की भी नहीं चाहिए. बस परिवार में मर्यादा के साथ रहे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए. “

“ ठीक है, मैं कमला के भैया से बात कर तुम्हें खत लिखूंगा. “

कमला के भाई भाभी को घर बैठे बहन का रिश्ता मिल गया, लड़के वाले की तरफ से दहेज़ या ऐसी कोई खास मांग भी नहीं थी. भला उनको क्या ऐतराज होता ? हाँ, कमला के भाई ने कहा कि कमला को जो सामान हमलोग उपहार में देंगे वे शादी के दिन मंडप में ही देंगे ताकि हमारे यहाँ के लोग देख सकें. मंडप की शोभा बढ़ेगी और लोगों को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि भाई ने बहन को यूँ ही विदा कर दिया.

दीना बाबू कुछ पल सोचने लगे और पत्नी के कान में धीरे से बोले “ मैंने अपनी तरफ से तो कुछ नहीं माँगा है. जब ये स्वेच्छा से कुछ दे ही रहे हैं तो गाँव में हमारी भी तो कुछ इज्जत है. आखिर हमारे यहाँ भी तिलक के दिन मंडप में कुछ शोभा होनी चाहिए. यहाँ भी समाज में लोग क्या सोचेंगे कि बेटे की शादी फटीचर परिवार  में कर दी. “

कैलाश ने माता पिता को समझाया और उन्हें एक किनारे ले जा कर कहा “ हमें किसी चीज की जरूरत नहीं है. ये लोग अपनी मर्जी से जो दे न दें आप मान जाइए. “

खैर कुछ देर आपस में सलाह मशवरा करने के बाद दीना बाबू मान गए.

दीना बाबू अपने बेटे कैलाश और परिवार के कुछ सदस्यों के साथ पटना गए. वहीँ पर एक सादे समारोह में कैलाश और कमला के रोका की रस्म हुई. फिर पंडित ने एक महीने बाद कमला और कैलाश के तिलक और उसके दो दिन बाद शादी का मुहूर्त निकाला.

तिलक में लड़की वालों की तरफ से दीना बाबू के पूरे परिवार के लिए कपड़े, मिठाइयां और फल आये थे. चांदी के कुछ सामान - पान, सुपारी, मछली, गिलास उनके यहाँ की रस्म के अनुसार आये. इसके अलावा फूल के एक कटोरे में हल्दी से रंगे चावल के ऊपर 51 रूपये कैश थे. उस दिन कुछ नोक झोंक हुई. यह किसी परिवार के सदस्य ने नहीं किया था बल्कि पंडित और नाऊ ने मिलकर किया था. उनका कहना था कि दीना बाबू ने तिलक में मोटी रकम नगद छुपा कर कैश में लिया है. यहाँ मंडप में दिखावे के लिए तिलक में 51 रूपये चढ़ाया है ताकि पंडित और नाऊ को ज्यादा नेग नहीं देना पड़े. बड़ी मशक्क़त से लोगों ने उन्हें समझाया कि तिलक में 51 रूपये के अलावा एक पैसा भी कैश नहीं लिया है दीना बाबू ने.

दो दिन बाद कैलाश की शादी थी. दीना बाबू दिन में बारात ले कर गाँव से पटना आये, उसी दिन रात में शादी होनी थी. धूम धाम से शादी भी हुई. अगले दिन दीना बाबू बहू की विदाई कर बारातियों के साथ पटना से अपने गाँव लौट रहे थे. कमला के यहाँ से जो भी साज सामान मिला था उस से वे पूरी तरह संतुष्ट थे. बारातियों का स्वागत भी अच्छी तरह से किया गया. कैलाश को सोने की एक अंगूठी के अलावा एक नयी घड़ी और रैले साइकिल मिली थी. दीना बाबू को मंडप में मिलनी के समय सोने की अंगूठी मिली थी. कुल मिला कर उम्मीद से ज्यादा ही मिला था. आज वे ट्रेन से गाँव के लिए रवाना हो रहे थे. गाँव में भी घर पर सबको बारात के लौटने के समय का मोटा मोटी अंदाज़ था ही.

उस दिन पौ फटने वाली थी. पटना आरा बक्सर पैसेंजर के आने में दो घंटे रह गए थे, इसी ट्रेन से आज पटना से बारात लौट रही थी. गोकुल को बैलगाड़ी ले कर स्टेशन जाना था. उसके मालिक दीना बाबू अपने बेटे कैलाश बाबू की शादी के बाद बेटे बहू के साथ लौट रहे थे. गोकुल ने जल्दी से दातुन किया और वह कपड़े बदलने लगा. तभी दीना बाबू की पत्नी ने उसे आवाज़ दे कर कहा “ गोकुल, बैलगाड़ी तैयार है न. उसमें अच्छा से पर्दा बाँध दिया है न. “

“ हाँ, हाँ. मुझे पता है. सब कुछ तैयार ही है मालकिन. बस चलने ही वाला हूँ. “

“ ठीक है, आ कर अपना नाश्ता चाय ले जा. “

नाश्ता चाय के बाद गोकुल ने बैलगाड़ी में पर्दा लगाया फिर बैलों को बाँधा. अपनी एक बांस की पतली कंडी से उन्हें हांकते हुए बोला “ हुर्र,हो, हुर्र हो.. जल्दी चल. “ बैल दौड़ पड़े और वह गाँव से स्टेशन के लिए निकल पड़ा. स्टेशन गाँव से तीन कोस दूर था.

 

क्रमशः

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